आरिवर सरकार कितनी कंपनियां बेचेगी?
केंद्र सरकार के वाणिज्यक मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले दिनों कहा कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं है। हालांकि इसके अलावा सरकार और कोई काम करती भी नहीं है, बाकी सारे काम तो भारत में भगवान भरोसे होते हैं। भारत में सरकार का मुख्य काम कारोबार करना ही है। सरकार तेल बेचती है, बैंक चलाती है, लोहा बेचती है, हवाई हजाज और ट्रेन चलाती है, बस चलाती है आदि-आदि। कुल मिलाकर हर किस्म के कारोबार में सरकार शामिल है, पर अब सरकार कह रही है कि उसका काम कारोबार करना नहीं है। यह इल्हाम होने के बाद सरकार तमाम सरकारी कंपनियों को बेचने की तैयारी में लगी है। सरकार ने एयर इंडिया को बेचने का फैसला किया है। इसकी बिक्री के साथ ही सरकार विमानन के कारोबार से बाहर हो जाएगी। इसे बेचने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री की अध्यक्षता में चार मंत्रियों का एक समूह बना है। गौरतलब है कि कंपनी के ऊपर करीब 75 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है, इसलिए इस बात की उम्मीद नहीं है कि इसकी बिक्री से केंद्र सरकार को कोई खासा कमाई होगी। इसलिए इसके साथ कई और कंपनियों को बेचने का फैसला कर लिया गया है। सरकार हवाई अडडे भी बेच रही है और रेलवे के निजीकरण की भी शुरुआत हो गई है। सरकार डेढ़ सौ ट्रेन और लगभग पचास स्टेशन पहले चरण में निजी हाथों में देने जा रही है। कहा जा सकता है कि अगले कुछ दिन में सरकार सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र से पूरी तहर बाहर हो जाएगी, फिर लोगों का आवागमन पूरी तरह से निजी हाथों में होगा। हवाई यातायात तो हो सकता है कि अगले चंद महीनों में ही पूरी तरह से निजी हाथों में चला जाए। आम लोगों पर इसका क्या असर होगा, इसका आकलन बाद में होगा। यह भी सरकार की खूबी है कि वह फैसला करने से पहले उसके असर का आकलन नहीं करती है। जैसे धूम-धड़ाके से जीएसटी लागू किया गया और उसके बाद एक सौ से ज्यादा बदलाव किए जा चुके हैं। उसमें बनाए गए शुल्क के स्लैब अप्रासंगिक हो गए हैं, और रिटर्न भरने का तरीका भी पूरी तरह से बदला जा चुका है। इसके बावजूद कुछ दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इसमें कुछ खामियां हैं, और लोगों की मुश्किलें दूर नहीं कर पा रहा है। सरकार का अपना राजस्व कम हुआ है, सो अलग है। उसी राजस्व की भरपाई के लिए सरकारी कंपनियों को बेचने का सिलसिला तेज हुआ है। सरकार अपनी दो संचार कंपनियों भारत संचार निगम लिमिटेउ (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) को बंद करने की तैयारी में है। इनके बंद होने के बाद सरकार संचार सेवा के क्षेत्र से पूरी तरह बाहर हो जाएगी और देश के लोग अपने हर किस्म के संचार के लिए निजी क्षेत्र की तीन कंपनियों पर निर्भर होंगे। बहरहाल विमानन, रेलवे और संचार के सेक्टर से बाहर होने से पहले केंद्र सरकार कम से कम पांच सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने जा रही है। इनमें सरकार को एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा मिलेंगे। __ कहा जा रहा है कि कारपोरेट टेक्स में छूट के जरिए सरकार ने देश की निजी कंपनियों को करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए की जो राहत दी है उसकी भरपाई भी सरकारी कंपनियों को बेचकर की जाएगी। हैरानी की बात यह है कि सरकार जिन पांच सरकारी कंपनियों को बेचने जा रही है उनमें से कोई भी कंपनी घाटे में नहीं चल रही है। मिसाल के तौर पर सरकार भारत पेट्रोलियम को बेचने जा रही है। इसमें सरकार 53 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी बेचेगी। वित्त वर्ष 2018-19 में इस कंपनी का मुनाफा सात हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का था और इसकी बाजार पूंजी एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक है। सिर्फ इस कंपनी में हिस्सेदारी बेचकर सरकार को 54 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम मिलेगी। इसी तरह कंटेनर कारपोरेशन को भी बेचने जा रही है, जिसका मुनाफा पिछले वित्त वर्ष में करीब 12 सौ करोड़ रुपए था। इसकी बाजार पूंजी करीब 35 हजार करोड़ की है। सरकार इसमें 30 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगीइन दोनों कंपनियों में काम करने वाले लोगों की संख्या चार हजार के करीब है। सरकार इनके अलावा शिपिंग कारपोरेशन आफ इंडिया, नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन लिमिटेड और टीएचडीसी को भी बेच रही है।