अयोध्या विवाद: क्या फैसला सर्वमान्य होगा...?
देश की सबसे बड़ी अदालत ने करीब चालीस दिन की अनवरत मशक्कत के बाद बहविवादित व चिर प्रतीक्षित अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद की सनवाई परी कर ली. अब परा देश फैसले की प्रतीक्षा में है. जो नवम्बर के पहले पखवाडे में कभी भी आ सकता है। चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई सत्रह नवंबर को सेवानिवत्त हो रहे है, इसलिए वे चाहते है कि उनके पद पर रहते हुए इस चिर विवादित विवाद पर फैसला आ जाए, जिससे इस विवाद के पांच सौ साल के इंतिहास में उनका नाम भी दर्ज हो जाए। यदि राजनीतिक दष्टि से भी देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने कार्यकाल की बड़ी उपलब्धियों में राममंदिर की उपलब्धि भी जोडना चाहते है, जिससे की उनके शेष बचे साढे चार साल के कार्यकाल में मंदिर बनकर तैयार हो जाए और उनके शासन का मार्ग और प्रशस्त हो जाए। वैसे इस चिरविवादित मामले को लेकर पिछले पांच सौ सालों में क्या- क्या हुआ यह तो सर्वविदित है, तत्कालीन फैसलों को लेकर कभी मुस्लिम पक्ष खुश हुआ तो कभी हिन्दू पक्ष। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से हिन्दू पक्ष सर्वाधिक खुश हुआ, और इसी फैसले के कारण यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय की चौखट पर पहुंचा, क्योंकि मुस्लिम पक्ष इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से काफी निराश, दु:खी व उत्तेजित हो गया था, अब लगातार चालीस दिन सुनवाई करके सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पांच न्यायाधीशों ने काफी मशक्कत की है, सभी पक्षों को ध्यान से सुना है और अब वे इस विवाद का अंतिम फैसला सुनाने की तैयारी कर रहें है। अब फैसला कैसा व किसके पक्ष या विपक्ष में आएगा? यह तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता, किंतु यह सही है कि इस विवाद से जुड़े दोनों ही पक्ष काफी आशान्वित नजर आ रहे है, और सुप्रीम कोर्ट की भी यह मंशा नजर आ रही है कि कथित रामजन्म भूमि का मालिकाना हक किसी को भी मिले, किंतु दूसरे पक्ष को भी न्यायालय निराश नहीं होने देगा, उसे भी कुछ तो उपलब्धि अवश्य हासिल होगी। इसके साथ ही यहां यह भी उल्लेखनीय है कि फिलहाल दोनों ही पक्ष भावी फैसले को लेकर अपनी आम सहमति जाहिर कर रहे हैं और सभी दावा कर रहे है कि सर्वोच्च न्यायालय जो भी फैसला सुनाएगा वह सर्वमान्य होगा। किंतु दोनों पक्षों के इन दावों के साथ यह आशंका भी प्रकट की जा रही है कि अभी फैसला आने के पूर्व न्यायालय में न्यायाधीशों के सामने ही दस्तावेज (नक्शे) फाड़े जा रहे है और एक पक्ष विशेष से सर्वाधिक सवाल पूछने के आरोप लगाए जा रहे है, अर्थात् अपरोक्ष रूप से माननीय न्यायाधीशों पर पक्षपात के आरोप मढ़े जा रहे है, तो क्या ये पक्ष फैसला अपने पक्ष में नहीं आने के बाद उसे सहर्ष स्वीकार कर लेगें? और क्या तब देश के सबसे बड़े न्यायालय को आरोपों के कटघरे में खड़े करने की कोशिशें नहीं की जाएगी? आज देश को इसी बात की सबसे बड़ी चिंता है।
वैसे यहां एक संभावना यह भी प्रकट की जा रही है कि यदि इस चिरविवादित प्रकरण का फैसला हिन्दूओं के पक्ष में आता है तो सत्तापक्ष व उससे जडे संगठन देश में एक ही पखवाड़े में दो बार दीपावली मनाएगी और चूंकि संसद का शीतकालीन सत्र 18 नवम्बर से शुरू हो रहा है और तब तक इस विवाद का फैसला आ चुका होगा, इसलिए वह संसद सत्र शीतकालीन सत्र नहीं बल्कि “मंगलमयी महोत्सव सत्र" होगा, जिसमें सत्तारूढ़ दल इस फैसले को अपने शासनकाल की सबसे बडी उपलब्धि बताने में नहीं चूकेगा और परे देश में विश्व हिन्द परिषद. भारतीय जनता पार्टी, राष्टीय स्वयं सेवक संघ और अन्य हिन्द संगठन काफी खुशियां मनाने वाले है, फिर चाहे इस विवाद को निपटाने में मशक्कत चाहे न्याय पालिका ने ही क्यों न की हो, उपलब्धि तो मोदी सरकार की ही गिनाई जाएगी, क्योंकि भाजपा के इसी काल के चुनावी घोषणा-पत्र में जम्मू-कश्मीर से धारा-370 व 35ए हटाने के साथ ही रामजन्म भूमि पर भव्य मंदिर बनाने का वादा भी किया गया था। इस तरह धर्म व न्याय से जुड़े इस विवाद के फैसले का श्रेय सरकार के खाते में जमा हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।