'राजा' 'महाराजा' की परंपरागत लड़ाई में कोई जीते-कोई डारे असल द्वार तो कांग्रेस की हो रही है। सबने मिलकर जिस तरह एक होकर काग्रेस की सरकार बनाई, उसी तरह एक होकर यदि सरकार नहीं चल रही तो इसका बहुत गलत संदेश प्रदेश के आमजन तक पहुंच रहा है। यदि इस बार चूक गए तो लंबे समय तक पुनः कांग्रेस सत्ता से दूर हो जाएगी। वैसे ही कांग्रेस का आधार देश में सिकुड़ रहा है। जिन राज्यों में टापू की तरह कांग्रेस सरकारें हैं, भाजपा की बाढ़ में उन्हें बचाए रखना कांग्रेस के लिए चुनौती है। मगर कांग्रेस है कि खद कुल्हाड़ी पर पांव मारती नजर आ रही है।
15 वर्षों के वनवास के बाद कांग्रेस की सरकार मध्यप्रदेश में बनी है। बहुमत का आंकड़ा भी समर्थन जुटाकर पूरा किया गया है। उम्मीद थी कि कांग्रेस अपनी पुरानी भूलों से सबक लेकर ऐसा कछ करेगी जिससे भाजपा के राज-काज से बेहतर दिखेगी। दुर्भाग्य कि सत्ता पाकर कांग्रेस अपनी पुरानी आदतों से मुक्त नहीं हो पा रही है। दिग्विजय सिंह की दस वर्षों से जमी सरकार को प्रदेश के मतदाताओं ने नकारकर भाजपा की उमा भारती को बड़े विश्वास से सत्ता सौंपी थीमगर वे भी अपने स्वभाव की हडबडी में सत्ता पर ज्यादा दिन टिक नहीं पाईं। फिर बाबूलाल गौर बने और उन्हें एक दिन अचानक हटाकर सत्ता पर शिवराज सिंह चौहान को काबिज किया गया। शिवराज ने अपने धैर्य और संयम से सरकार चलाना प्रारंभ किया और सफल सरकार चलाकर बतलाया। तीन बार निरंतर सत्ता प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को सौंपी। चौथी बार भी भाजपा सत्ता के बहुत करीब पहुंचकर चूकी है। इसका कारण भाजपा की आंतरिक कलह थी। दूसरी दिग्विजय सिंह की सक्रियता जिनके प्रयासों से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन पाई। ___ मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया को धकेलकर कमलनाथ मुख्यमंत्री बने इसके पीछे भी दिग्विजय सिंह का हाथ और साथ रहा। सिंधिया परिवार और दिग्विजय सिंह की पारंपरिक लड़ाई है। इसके चलते ज्योतिरादित्य के लिए दिग्विजय सदा मुश्किलें पैदा करते आये हैं। फिर ज्योतिरादित्य एक जनप्रिय नेता है, उनका ग्वालियर और मध्यभारत क्षेत्र में गहरा जनाधार है। अतः इस क्षेत्र में विधायक उनके विश्वस्त व्यक्ति ही जीतते आए हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआउन सबकी कोशिश थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए लेकिन जब कमलनाथ को बना दिया गया तो कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के विश्वस्त विधायकों को जगह देकर उनके असंतोष को शांत किया। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनवाने की जद्दोजहद में लगे हैं। इसके लिए पार्टी छोड़ भाजपा में जाने की धमकियां भी चल रही हैं, जिसकी अफवाह आए दिन अखबारों, सोशल मीडिया आदि में उडती रहती हैं। इसका अधिकृत खंडन ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ से नहीं आया। अतः यह माना जा रहा है कि वे भी अपने समर्थकों के साथ दबाव की राजनीति में शामिल हैंकमलनाथ और उनकी सरकार के सुरक्षा कवच बने दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने खुलकर दिग्विजय भोपाल, 16-31 अगस्त 2019 सिंह के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। वे अभद्र भाषा तक पहुंचकर दिग्विजय का अपमान करने पर आमादा हैं। दिग्विजय सिंह ने एक पत्र लिखकर मंत्रियों से जन समस्याओं पर चर्चा करने के लिए कमलनाथ सरकार के मंत्रियों से फिर मुलाकात का समय मांगा। यह पत्र अधिकांश मंत्रियों तक पहुंचने से पहले मीडिया में पहुंच गया। हंगामा होना ही था, सो हुआ। इसकी तीखी प्रतिक्रिया में कमलनाथ सरकार के मंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय पर अभद्र भाषा में अनेक आरोप लगा डाले। एक-दिग्विजय सिंह ने अपने पत्र में ट्रांसफरपोस्टिंग का जिक्र किया है? आपका बयान सीधे-सीधे पार्टी लाइन का उल्लंघन है। दो- मेरे जैसे हजारों कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की _सरकार बनवाने में अपना योगदान दिया है और उन सभी लोगों का परिवार किसी न किसी समस्या से जझ रहा है। उनकी सनवाई कमलनाथ के बाद दिग्विजय सिंह के यहां हो रही है तो इसमें समस्या क्या है? क्या हजारों-हजार कार्यकर्ताओं को अपने नेता से अपने भाईबंधु का ट्रांसफर करवाने का हक नहीं? तीन मंत्रियों की निश्चित ही अपनी व्यस्तता है। क्योंकि आपको सरकार चलानी है इसलिए सभी कार्यकर्ताओं से नहीं मिल सकते। इसके अलावा वे इस बात पर अड़े रहे कि दिग्विजय सिंह को अपना पत्र वायरल नहीं करना चाहिए। सिंघार के तेवर तो कमलनाथ की फटकार के बाद ठंडे पड़ गए, मगर इसका आम जनता पर प्रभाव ठीक नहीं पड़ा। कमलनाथ सरकार के एक और मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने दिग्विजय सिंह के पत्र पर प्रतिक्रिया वक्रोक्ति के अंदाज में दी। उन्होंने कहा कि पत्र लिखना तो विपक्ष का काम है। दिग्विजय प्रदेश में हमारे वरिष्ठ नेता हैं। उनहें लंबित मांगों को लेकर हम मंत्रियों को फोन कर सीधे आदेश देना चाहिए। सूबे का हर मंत्री उनके सामने दंडवत है। ऊपर से विनम्र दिखने वाला यह बयान वक्रोक्ति में व्यंग्य लिए है। कमलनाथ की जगह नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चल रही अटकलों के बीच मुंगावली के एनएसयूआई कार्यकर्ताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष बनाने के लिए सोनिया गांधी को खून से खत लिखा है। शिवपुरी जिले के पोहरी क्षेत्र के विधायक सुरेश राठखेड़ा ने सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष न बनाने की सूरत में अपने विधायक पद से इस्तीफा देने की धमकी दी है। मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर तो कई बार दोहरा चुके हैं कि सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाना चाहिए। इस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में उनके समर्थक हर स्तर पर उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद दिलवाने की आवाज उठा रहे हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस पर मौन हैं। अतः यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके लिए उठती इन आवाजा का सि इन आवाजों को सिंधिया का मौन समर्थन है। मगर इससे वे कांग्रेस का कितना नुकसान कर रहे हैं इसका अनुमान शायद उन्हें नहीं है। पद प्राप्ति की यह लड़ाई सड़क पर आने से कांग्रेस के प्रति लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है। ___'राजा' 'महाराजा' की परंपरागत लड़ाई में कोई जीते-कोई हारे, असल हार ती काग्रेस का हो रही है। सबने मिलकर जिस तरह एक होकर कांग्रेस की सरकार बनाई, उसी तरह एक होकर यदि सरकार नहीं चल रही तो इसका बहुत गलत संदेश प्रदेश के आमजन तक पहुंच रहा है। यदि इस बार चूक गए तो लंबे समय तक पुनः कांग्रेस सत्ता से दूर हो जाएगी। वैसे ही कांग्रेस का आधार देश में सिकुड़ रहा है। जिन राज्यों में टापू की तरह कांग्रेस सरकारें हैं, भाजपा की बाढ में उन्हें बचाए रखना कांग्रेस के लिए चुनौती है। मगर कांग्रेस है कि खुद कुल्हाड़ी पर पांव मारती नजर आ रही है।